कांपती थी दुनिया कभी नाम से मेरे, और ये हसीं चाँद भी झुकाया है मैंने ।
इतना सरल ना था कल, शख़्स आज ये जैसे है ,
जा चला जा ना दे अतरंगी मशवरे इश्क़ विश्क़ के..
दो बार मर के सिखा है मैंने, कि आख़िर जीना कैसे है ॥
Writer: Jaswinder Singh Baidwan