Tuesday, November 7, 2023

आख़िर जीना कैसे है ॥

कांपती थी दुनिया कभी नाम से मेरे, और ये हसीं चाँद भी झुकाया है मैंने

इतना सरल ना था कल, शख़्स आज ये जैसे है ,

जा चला जा ना दे अतरंगी मशवरे इश्क़ विश्क़ के..

दो बार मर के सिखा है मैंने, कि आख़िर जीना कैसे है


Writer: Jaswinder Singh Baidwan