Poetry by Jaswinder Baidwan
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Tuesday, September 17, 2024
सभी शायर शहर के
सुना है वो काट रहा है ज़िंदगी आजकल अकेले किसी दौर में जिसे अपने हुस्न पर बड़ा गुमान था मुझ जैसे कई लगाते थे चक्कर उसके अरे वही श्य जिसका नुक्कड़ पर सबसे बड़ा मकान था शहर में जीतने भी है आज तमाम शायर अरे नादानों ये उसी की तो ठोकरों का अहसान था
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