Poetry by Jaswinder Baidwan
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Wednesday, October 30, 2024
बेशुमार होता जा रहा है तू पास मेरे
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अब किस तरह रखूँ मैं सँभाल कर तुझे, बेशुमार होता जा रहा है तू पास मेरे
Saturday, October 19, 2024
तालियाँ
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कुछ नुमाइश तो ज़रूरी है मेरे भी ज़ख़्मों की ..बजाई हैं बहुत तालियाँ मैंने भी दुनिया के मेले में
Saturday, October 12, 2024
Rabb e ban jaaye banda
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kamiyan har ikk ch hundiyan kamiyan bin kaahda dhanda j kamiyan na hon tan "BAIDWANA" rabb e ban j banda
Tuesday, October 8, 2024
ख़्वाहिशें - फ़रमाइशें
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ख्वाहिशों से दूरी बना कर रखना ए दोस्त करेंगी फरमाइशें वही जो ना होगा नसीब में
आँखों में भी ख़ामोशी हो
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लफ़्ज़ों की क्या औक़ात वहाँ, जिसकी आँखों में भी ख़ामोशी हो
Sunday, September 29, 2024
एकांत
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जिस वक्त ने छीना है सब कुझ उसी वक्त ने बहुत सिखाया है मुझे भूल गया था किरदार अपना मैं इस भीड़ में अपनों की इस एकांत ने इंसान बनाया है मु...
Saturday, September 28, 2024
आजकल दोबारा ख़ुद में
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कई बरस पहले जो हो गया था लापता कहीं ढूँढ रहा हूँ वो सक्ष मैं आजकल दोबारा ख़ुद में
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