Poetry by Jaswinder Baidwan
Wednesday, September 24, 2025
Tuesday, September 23, 2025
Monday, September 22, 2025
आ जाऊँ जो अपनी आई पर
ख़ास हो तुम मेरे लिए तो मुझे आम ना समझो
आ जाऊँ जो अपनी आई पर
तो मैं ख़ुद पर भी तरस नहीं खाता
Sunday, September 14, 2025
आईने
फेंक दिए है मैंने सारे
ये आईने नहीं किसी काम के
बस इक उसकी आँखों में ही
अच्छा दिखता था चेहरा मेरा
Friday, September 12, 2025
कलयुग
उसे मानना ईच्छा नहीं एक सुखी इंसान की
बस मजबूरी एक डरे हुए लाचार की है
कलयुग है पार्थ
यहाँ तलाश भगवान की नहीं चमत्कार की है
Thursday, September 11, 2025
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