कहते हैं वो बिगाड़ के रख देंगे रसूख़ तेरा
नीव है खोखली जिनके किरदारों की
वफ़ा
बेवफ़ाई
ज़िम्मेवारी या तौहमतें
तू पढ़कर खुद ही तय कर ले ऐ सनम
मैं नहीं जानता क्या अर्थ हैं मेरी लिखी कविताओं के
कुछ बातों से रहें अनजान तो ही है बेहतर
कच्ची उम्र के कुछ तजुर्बे
ज़िंदगी भर तकलीफ़ देते हैं
बड़ी अजब सी रही ज़िंदगी
मैं सजाता हूँ ख़्वाब उम्र भर के
और लोगों को छोड़ कर जाने में पल भर की भी देरी नहीं लगती
दुनिया कहती है अपनी अपनी क़िस्मत होती है सबकी
मुझे तो मेरी ये क़िस्मत भी
सच में अब मेरी नहीं लगती
ठोकरें भी मिलेंगी
धोखे भी मिलेंगे
लुट जाएगा सब कुछ
और कुछ मौक़े भी मिलेंगे
टूट कर बिखर जाओ चाहे
मगर इरादों में आग मचाए रखना
तमाशे तो चलते ही रहेंगे उम्र भर ऐ दोस्त
बस तुम अपना किरदार बचाए रखना
खुद ही मुजरिम खुद ही सजा मुक़र्रर करता हूँ
अजब सी कश्मकश है ऐ दोस्त
खुद ही करता हूँ पैरवी अपनी
और खुद के ही ख़िलाफ़ लड़ता हूँ
टेक लिए माथे सब जगह
पहन के देख लिए ताबीज़ सारे
फिर भी नज़रंदाजी तेरी घटती ही नहीं
मेरी समझ से बाहर है
ऐ सनम कौनसे जहाँ का खुदा है तू …
मैं खुद ही ले लेता हूँ ज़िम्मेवारी सारी
हमारे रिश्ते के हषर की,
तू खुद को बेवज़ह बेक़सूर साबित ना कर
तुझे मिलने से पहले भी अकेला ही था मैं,
ना जाने अब क्यूँ हो गया हूँ अधूरा तेरे जाने के बाद