बोलता कम ही हूँ में
लेकिन याद रखना
बोलूँगा जिस भी महफ़िल में
पूरा माहौल उठा के रख दूँगा
बोलता कम ही हूँ में
लेकिन याद रखना
बोलूँगा जिस भी महफ़िल में
पूरा माहौल उठा के रख दूँगा
हो सकता है ना चले दो दिन भी
और चलने को चल जाए उम्र भर
कोई नहीं Guarantee
अरे भाई Chinese product है मोहब्बत
लगता है उन्हें भी उनकी औक़ात दिखा गया है कोई
बेरुख़ी में उनकी अब वो पैनापन ना रहा ।
चिल्लाता था मैं अक्सर
कि किसी तरह तो तुझे मेरे दर्द का एहसास हो
अब हो गया हूँ ख़ामोश
इल्म हुआ जब से
कि ये तेरे बस की बात नहीं
आज लिखता हूँ मैं जो भी,
है एहसान तेरा
ना छोड़ता जो तू साथ मेरा
हर पन्ना कोरा ही रहता
100 ਚੋ 99 ਰੁਲਦੇ ਮਿੱਟੀ ਚ
ਕੋਈ ਇੱਕ ਅੱਧਾ ਇ ਲਿਸ਼ਕਦਾ
ਕਿੰਨ੍ਹੇ ਲੁਟੇ ਕਿੰਨ੍ਹੇ ਉੱਜੜੇ ਹਿਸਾਬ ਨੀ ਲੱਗਣਾ
ਕਮਲਿਆ ਖਾਤਾ ਬੜਾ ਪੁਰਾਣਾ ਇਸ਼ਕ ਦਾ
हर कमी मेरी से था तू वाक़िफ़
तुझसे पर्दे की कोई बात ना थी
बस एक तू ही तोड़ सकता था मुझे
ऐ सनम …और किसी की ये औक़ात ना थी ।
उम्र भर रहा मैं भागता तुझसे
फिर भी आख़िर गले लगाएगी
ऐ मौत वफ़ा की ज़िंदा मिसाल है तू
इश्क़ करने चले हो बर्खुरदार ?
महँगा और बड़ी हैसियत वालों का बाज़ार है
सभी जेबें ज़रा अच्छे से भरकर जाना
हम खुद हैं ज़िम्मेवार सब कुछ टूटने के
उसने तो बस एक रिश्ता ही तोड़ा था
लगता है लफ़्ज़ों की चोट से आप नहीं हैं वाक़िफ़ जनाब
ये ज़रूरी नहीं कि हर आग चिराग़ से ही लगी हो
एक मशवरा है
लेकिन बर्खुरदार
आएगा समझ तुम्हें लुट जाने के बाद ही …
छोड़ दे ये इश्क़, क़सम से बड़े घाटे का सौदा है ।
अब छोड़ने की आई बात तो लाख कमियाँ ढूँढ ली तूने
जब मिले थे तुझे तब कौनसा खुदा था मैं
ਨਿੱਤ ਲੱਬਦਾ ਹਾਂ ਲੱਖ ਬਹਾਨੇ ਸੱਜਣਾ ਮੈਂ ਤੈਨੂੰ ਵੇਖਣ ਨੂੰ
ਕਿਉਂਕਿ ਨਾ ਮਿਲਣਾ ਇਹ ਜਨਮ ਦੋਬਾਰਾ ਨਾ ਮਿਲਣਾ ਏ ਤੂੰ
हुस्न पर ग़ज़ल की जब भी की किसी ने इल्तिजा हमसे
हमने सर झुका के बस “तेरा नाम” पढ़ दिया ।
लहजे में थोड़ा ठहराव
इंतज़ार रगो में
और सर झुकाकर कीजिए इबादत
बर्खुरदार इश्क़ है, इंक़लाब नहीं ।
बस यही मलाल रहा उम्र भर तेरे जाने के बाद
कि एक बार और उन्हें रोक कर तो देखते ।
वफ़ा, इश्क़, वादों की ना कर बात मुझसे
वहमों में जीना छोड़ चुका हूँ मैं ।
एक सुलझा दूँ
तो सामने हर रख देती है हर बार सवाल नया
ऐ ज़िंदगी तुझसे सख़्त अध्यापक नहीं देखा ॥
शान महफ़िलों की अब ख़ामोश रहने लगा
औरों का दिल लगाने वाले ने, लगता है दिल लगा लिया अपना कहीं ।
एक अरसे बाद भी ना बदला जिन्होंने मुझसे बात करने का लह्ज़ा ॥
ख़त तेरे ऐ सनम सच में बड़े वफ़ादार निकले॥
लूट के ग़ैरों को अपनी चालाकियों पर इतराने वाले नादाँ
मेरे दिल में ही खुद को छोड़ गया है तू ॥
सब कुछ छीन के हमसे हमें आज़ाद करने वाले
पूछ तो ले हमसे, क्या पता हमें तेरी क़ैद ही पसंद हो ॥
क्या ख़ाक लिखूँ ऐ इश्क़ तेरे बारे
तू किसी को आया हो रास तो तेरी कोई मिसाल भी दूँ