भागते रहे उम्र भर पीछे ख़ुशी के
मगर बिना शर्त अपनाया ग़म ने
थक चुके थे समझा कर बार बार उन्हें
फिर आख़िर ख़ुद के ही दिल को समझाया हमने
भागते रहे उम्र भर पीछे ख़ुशी के
मगर बिना शर्त अपनाया ग़म ने
थक चुके थे समझा कर बार बार उन्हें
फिर आख़िर ख़ुद के ही दिल को समझाया हमने
एक तेरे दीदार से ही तेज़ हो जाती हैं साँसे
कहीं थम ही ना जाएँ तेरा हाथ थामने से
है यक़ीन तुम्हें भी पहली नज़र के इश्क़ में
या गुज़रूँ मैं
एक बार फिर दोबारा सामने से ?
क्या क्या ज़ख़्म दिए हैं तूने
और क्या क्या है एहसान तेरा
बस इक तेरा नाम छुपाना सीख लूँ
तो खुदा क़सम
बेहतरीन शायरों में होगा नाम मेरा
तू कुछ साथ तो दे
मेरी गवाही तो भर
ना मिले आख़िर
तो कह देंगे हम भी
कि ख़ुदा को यही मंज़ूर था
भूल चुका हूँ उड़ान अपनी
दिल नहीं बचा सिने में मगर ज़िंदा हूँ
हुस्न की डाल पर नहीं बैठता अब मैं
इश्क़ में चोट खाया परिंदा हूँ
आईने से कर बात कभी
ख़ुद से कर मुलाक़ात कभी
क़िस्मत को कोसते जी रहा है
और मर जाएगा यूँ ही इक दिन रो रोकर
क्यों रह गया है पीछे
क्या कमियाँ है तुझमें
हो खड़ा और
मर्दों की तरह ख़ुद से कर स्वालात कभी
आईने से कर बात कभी
ख़ुद से कर मुलाक़ात कभी
बड़ी ही बेसब्री से करते रहे इंतज़ार जिसका बचपन में
पहुँच कर उसी बेरहम जवानी में
अब हम अपने बचपन को तरसते हैं
बेरहमी की सभी हदें कर दी हैं पार
मेरा दिल तोड़ने में उसने
लगता है बेहतरीन शायरों में होगा अब नाम मेरा
कैसे करूँ ब्याँ कि कितना ग़ज़ब था अंदाज़-ए-इल्ज़ाम उनका
कि ख़ुद के ही ख़िलाफ़ हँस कर गवाही दे दी हमने
रोज़ लिखता हूँ नज़्म नई
मगर वजह बस वही एक पुरानी है
टूट कर चाहा जिसे तोड़ गया ग़रूर वही
अपनी भी यारों तुम्हारे जैसी ही वही इश्क़ कहानी है
तुझे याद नहीं आती मेरी
कोई बात नहीं
मुझे भी कहाँ अब मेरा ख़याल आता है
क्यों छोड़ा तूने
छोड़ा किसके लिये
ये सब रह गया इक उम्र पीछे
जब से घेरा है ज़िम्मेदारियों ने
अब ज़हन में कहाँ
ख़ुद के लिए कोई ख़याल आता है
तुझे याद नहीं आती मेरी
कोई बात नहीं