आईने से कर बात कभी
ख़ुद से कर मुलाक़ात कभी
क़िस्मत को कोसते जी रहा है
और मर जाएगा यूँ ही इक दिन रो रोकर
क्यों रह गया है पीछे
क्या कमियाँ है तुझमें
हो खड़ा और
मर्दों की तरह ख़ुद से कर स्वालात कभी
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